Wednesday, April 25, 2018

संस्कृत विश्वविद्यालय : मुख्य भवन के जीर्णोद्धार की नहीं बदल रही कछुआ चाल


सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक मुख्य भवन के जीर्णोद्धार की कछुआ चाल नहीं बदल पा रही है। कार्य की धीमी गति को देखते हुए एक बार फिर उसके पूरा होने की अवधि बढ़ाई गई है। अब 31 अगस्त तक बाकी बचा 40 फीसदी काम पूरा कर लेना है। विश्वविद्यालय प्रशासन दो बार अवधि बढ़ा चुका है। मुख्य भवन का जीर्णोद्धार इंटैक करवा रहा है। धीमी गति को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने इंटैक के अधिकारियों को अगले सप्ताह बुलाया है। 
जीर्णोद्धार कार्य मार्च-2016 से शुरू हुआ था। विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार दिसंबर 2017 तक काम पूरा करना था। उस समय अवधि बढ़ाकर मार्च 2018 कर दी गई मगर अब भी काम चल रहा है। मार्च तक कम से कम छह तैयार कमरे विश्वविद्यालय को सौंपने का वादा था ताकि वहां कक्षाएं चलाई जा सकें। 
काम की धीमी गति के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि 166 साल पुराना भवन काफी क्षतिग्रस्त है। पूरा भवन पत्थर और लकड़ियों से बना है। भवन को उम्मीद से कहीं अधिक नुकसान हो चुका है। इसलिए काम पूरा करने में समय लग रहा है। 
पूर्व कमिश्नर ने भी जताई थी नाराजगी
विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक इंटैक की लापरवाही से काम की गति काफी धीमी है। पर्याप्त संख्या में मजदूर नहीं लगाए गए हैं। पूर्व मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने करीब छह माह पहले निरीक्षण किया था। उन्होंने भी समय से काम पूरा करने को कहा था। 
धन की कोई कमी नहीं
विश्वविद्यालय के अभियंता पीयूष मिश्र ने बताया कि धन की कोई कमी नहीं है। शासन ने मुख्य भवन के जीर्णोद्धार के लिए 11 करोड़ और 39 लाख रुपये स्वीकृत किए थे। इसमें 10 करोड़ 76 लाख 67 हजार रुपये का भुगतान हो चुका है। इंटैक ने जीएसटी के कारण संशोधित इस्टीमेट भेजने की बात की है। उनसे प्रस्ताव मांगा गया है। 
तकनीकी दिक्कत आ रही आड़े
दूसरी ओर इंटैक के आर्किटेक्ट रोहित आनंद का कहना है कि संरक्षण का काम संभल-संभल कर करना पड़ता है। सेंट्रल हाल के जीर्णोद्धार में तकनीकी दिक्कत आ रही है। जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता है, नई समस्या आ जाती है। एक एक्सपर्ट विजिट करानी है। उनकी राय मिलते ही काम तेजी से होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रथम चरण का काम 31 अगस्त तक पूरा हो जाएगा।  
स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है मुख्य भवन
गोथिक शैली में निर्मित मुख्य भवन का शिलान्यास दो नवंबर 1847 का महाराजा बनारस व ब्रिटिश सेना के मेजर मारखम किट्टो ने किया था। मेजर किट्टो की देख-रेख यह भवन 1852 में बनकर तैयार हुआ था। 166 वर्ष पुराना मुख्य भवन कलाकारी का बेजोड़ नमूना है। इस भवन को विरासत सूची में डालने की तैयारी है।