तुलसी
मानस मन्दिर :
कशी का यह मन्दिर है खास
हर दीवार पर सजी है रामचरितमानस की चौपाई और दोहे
धर्म, संस्कृति, शिक्षा, आस्था,
सभ्यता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्राचीनतम
नगरी काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। काशी विश्वनाथ के अलावा शहर में
हजारों मंदिर है। इन मंदिरों में एक मंदिर बेहद खास है। इसका नाम है तुलसी मानस
मंदिर। यहां जो भी दर्शनार्थी आता है वो यहां की बनावट देख खो जाता है।
तुलसी
मानस मन्दिर काशी के आधुनिक मंदिरों में
एक बहुत ही मनोरम मन्दिर है। यह मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग पाँच कि॰ मि॰ दुर्गा
मन्दिर के समीप में है। इस मन्दिर को सेठ रतन लाल सुरेका ने बनवाया था। पूरी तरह
संगमरमर से बने इस मंदिर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा
सन॒ 1964 में किया गया।
इस मन्दिर के मध्य मे श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके
एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखा गया है।
इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान है,
साथ ही इसी मंजिल पर स्वचालित श्री राम एवं कृष्ण लीला होती है। इस
मन्दिर के चारो तरफ बहुत सुहावना घास (लान) एवं रंगीन फुहारा है, जो बहुत ही मनमोहक है। यहाँ अन्नकूट महोत्सव पर छप्पन भोग की झाकी बहुत ही
मनमोहक लगती है। मंदिर के प्रथम मंजिल पर राम चरिच मानस की विभिन्न भाषाओं में
दुर्लभ प्रतियों का पुस्तकालय मौजूद है। सम्पूर्ण मंदिर के परिधी में बहुत ही
कलात्मक ढंग से सऐक पहाड़ी पर शिव जी के मूर्ति से झरने का अलौकिक छटा देखते ही
बनता है।
कहा जाता है कि इस स्थान पर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना
की थी। यही कारण है कि इसे तुलसी मानस मंदिर कहा जाता है। यहां मधुर स्वर में
संगीतमय रामचरितमानस संकीर्तन गुंजायमान रहता है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार, पहले यहां एक छोटा मंदिर हुआ करता था। सन 1964
में कलकत्ता के एक व्यापारी सेठ रतनलाल सुरेका ने सफेद संगमरमर से
एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जिसका उद्घाटन भारत के
तत्कालीन राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था।