Wednesday, May 2, 2018

गंगा शुद्धिकरण के लिए एसटीपी बेमानी


वाराणसी। गंगा को स्वच्छ, अविरल और निर्मल रखने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। केवल काशी में ही करोड़ों की लागत से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं। महंगी मशीनें लगाई गई हैं, लेकिन ये सब गंगा शुद्धिकरण के नाम पर छलावा है। वजह, ये एसटीपी चार दशक पुराने तकनीक पर आधारित हैं। इनके जरिए सीवेज के शोधन के बाद भी पानी में केमिकल और हैवी मेटल बचे रह जाते हैं, जो नदी के लिए घातक हैं।
गंगा के जल की गुणवत्ता, उसकी महत्ता और उसकी उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने उसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया। ऐसे में गंगा में गिरने वाले शहरों के मलजल को रोकने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करके सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। कई अभी निर्माणाधीन हैं। लेकिन, इन प्लांटों की तो व्यावहारिक क्षमता है और ही तकनीकी क्षमता, कि वे सीवेज को इस तरह शोधित कर पाएं कि उसे नदी में बहाया जा सके। विशेषज्ञों के मुताबिक नई तकनीक के एसटीपी के बनाने और उसके रखरखाव पर खर्च इतना अधिक आता है कि उसे यहां की परिस्थितियों में बहुत उपयुक्त नहीं माना जा सकता। इनका लाइफ टाइम भी बहुत कम होता है। ऐसी स्थिति में गंगा शुद्धिकरण के लिए विकल्प यही है कि किसी भी तरह सीवेज नदी में बहाया जाए। शोधित सीवेज के पानी को सिंचाई और औद्योगिक उपयोग में लाया जाए।
350
एमएलडी है शहर का डिस्चार्ज
शहर के 20 लाख आबादी वाले क्षेत्र में करीब दो लाख से अधिक घर हैं। इन घरों से गंदे पानी की निकासी के लिए 820 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाई गई है। रोजाना 350 एमएलडी मलजल डिस्चार्ज होता है। लेकिन इस समय मात्र तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं, जिनकी कुल क्षमता ही 102 एमएलडी की है। ऐसे में 248 एमएलडी सीवेज सीधे नदियों में बहा दिया जाता है। यह स्थिति तब है जब आधा शहर ही सीवर लाइन से आच्छादित है। समूचे शहर में सीवर लाइन बिछने के बाद जाहिर है प्रति दिन निकलने वाले सीवेज की मात्रा दोगुनी हो जाएगी। तब इसके शोधन के मौजूदा विकल्प पूरी तरह फेल हो जाएंगे।