बीएचयू से एमबीबीएस, एमडी,
एमएस और बीएएमएस की पढ़ाई करने वालों के अपने नाम के आगे डॉक्टर
लिखने पर सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, विश्वविद्यालय ने एक
आरटीआई के जवाब में चौंकाने वाली जानकारी दी है।
विश्वविद्यालय ने इन डिग्रियों को
पाने वाले छात्रों को रजिस्ट्रेशन के बाद डॉक्टर लिखने की बात तो जवाब में कही है
लेकिन यह भी कहा गया है कि इसका कोई नियम नहीं है। विश्वविद्यालय की ओर से पांच
अगस्त, 2017 को दिया गया जवाब मंगलवार को सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ।
डाफी निवासी आशुतोष त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय से सात जुलाई, 2017 को आरटीआई में पांच बिंदुओं पर डिग्रीधारकों के डॉक्टर लिखने से जुड़ी जानकारियां मांगीं थी। अब विश्वविद्यालय के जवाब के बाद तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
विश्वविद्यालय के जवाब पर अगर गौर करें तो ऐसा कोई नियम तो नहीं है लेकिन ऐसी परंपरा बन गई है कि डिग्री पाने के बाद मेडिकल कॉलेजों में छात्र-छात्राएं अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखने लगते हैं।
जानकारी के मुताबिक मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई), सेंट्रल काउंसिल आफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) आदि संस्थाओं का भी ऐसा कोई नियम नहीं है।
आईएमए वाराणसी के अध्यक्ष डॉ. अरविंद सिंह का कहना है कि यह सही है कि कहीं नियम नहीं है लेकिन एमबीबीएस, एमडी, एमएस और बीएएमएस डिग्रीधारक डॉक्टर लिख सकते हैं। इस पर उठे सवालों पर 2004 में स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर एक कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी दी, जिसके बाद शासनादेश जारी हुआ था। शासनादेश में ऐसे डिग्रीधारकों के डॉक्टर लिखे जाने का जिक्र था।
डाफी निवासी आशुतोष त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय से सात जुलाई, 2017 को आरटीआई में पांच बिंदुओं पर डिग्रीधारकों के डॉक्टर लिखने से जुड़ी जानकारियां मांगीं थी। अब विश्वविद्यालय के जवाब के बाद तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
विश्वविद्यालय के जवाब पर अगर गौर करें तो ऐसा कोई नियम तो नहीं है लेकिन ऐसी परंपरा बन गई है कि डिग्री पाने के बाद मेडिकल कॉलेजों में छात्र-छात्राएं अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखने लगते हैं।
जानकारी के मुताबिक मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई), सेंट्रल काउंसिल आफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) आदि संस्थाओं का भी ऐसा कोई नियम नहीं है।
आईएमए वाराणसी के अध्यक्ष डॉ. अरविंद सिंह का कहना है कि यह सही है कि कहीं नियम नहीं है लेकिन एमबीबीएस, एमडी, एमएस और बीएएमएस डिग्रीधारक डॉक्टर लिख सकते हैं। इस पर उठे सवालों पर 2004 में स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर एक कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी दी, जिसके बाद शासनादेश जारी हुआ था। शासनादेश में ऐसे डिग्रीधारकों के डॉक्टर लिखे जाने का जिक्र था।