Tuesday, April 17, 2018

फ्रांस के राष्ट्रपति और जापान के पीएम भी कर चुके हैं तारीफ : ऐसा है बनारस का स्टोन क्राफ्ट

काशी की शिल्प कला की जब बात होती है तो उसमें स्टोन क्राफ्ट का नाम प्रमुख रूप से आता है। यहां के शिल्पियों द्वारा पत्थरों को तराश कर और अंडर कट (जाली बनाने की कला) से तैयार उत्पाद देश-दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है। यही वजह है कि जापान के प्रधानमंत्री भी इस कला की तारीफ कर चुके हैं। इसकी खास बात यह है कि पत्थरों को बिना तोड़े-जोड़े एक मूर्ति के अंदर दूसरी और दूसरी के अंदर तीसरी मूर्ति बनाई जाती है। 
रामनगर और आस-पास के इलाकों में रहने वाले 300 से ज्यादा शिल्पी स्टोन क्राफ्ट और अंडर कट वर्क से जुड़े हैं। मूल रूप से चुनार के पत्थरों को तराश कर भगवान बुद्ध, गणेश, शंकर समेत अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां, हाथी, मोर, उल्लू, डायनासोर, विशालकाय अंडे की आकृतियां और खूबसूरत लैंप आदि तैयार किए जाते हैं

पहले यह काम केवल सॉफ्ट स्टोन तक सीमित था पर अब यहां के शिल्पी मध्य प्रदेश और राजस्थान के सेलम व काला पत्थर को भी तराशकर आकर्षक उत्पाद तैयार कर रहे हैं। यही नहीं, इटली के एलाबास्टर पत्थरों पर भी जाली कटिंग की कला से भारतीय शिल्प में ढाल आकर्षक उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। दो वर्ष पहले काशी आगमन पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को स्टोन क्राफ्ट का उत्पाद भेंट में दिया गया था, जो उन्हें खूब पसंद आया था। उन्होंने इस कला की सराहना भी की थी। इसी वर्ष 12 मार्च को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को दीनदयाल हस्तकला संकुल में प्रधानमंत्री मोदी ने हाथी के अंदर हाथी को दिखाया था। यह सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क का था।
मास्टर शिल्पी बच्चा लाल मौर्या बताते हैं कि यहां के उत्पाद कई देशों में निर्यात किए जाते हैं। हालांकि उन्होंने चीन द्वारा इस कला की नकल कर मूर्तियां बनाए जाने से भारतीय शिल्पियों को नुकसान पहुंचने की बात भी कही। वहीं, जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि स्टोन क्राफ्ट के जीआई सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया अंतिम चरण में चल रही है। जल्द ही प्रमाणपत्र मिल जाएगा।
इस शिल्प का मूल केंद्र रामनगर है। हालांकि कुछ गांवों भीटी, सुलतानपुर और शहर के लहरतारा व लक्सा पर भी इसका काम होता है। यहां 10 से 12 करोड़ रुपये का स्टोन क्राफ्ट का कारोबार होता है। स्टोन शिल्प का बाजार पूरे यूरोप और अमेरिका के साथ जापान, कोरिया समेत कई देशों में फैला हुआ है। इन देशों में यहां के शिल्पी अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं।
शिल्पी शिवपूजन जायसवाल, सुदामा सुनील कुमार, महेंद्र प्रसाद, बचाऊ ने बताया कि अच्छी क्वालिटी का छह से आठ इंच का हाथी तैयार करने में एक हफ्ता लग जाता है। आर्डर की कोई समस्या नहीं है बस अच्छी क्वालिटी के पत्थर उपलब्ध नहीं हो पा रहे।

शिल्पी शिवपूजन जायसवाल, सुदामा सुनील कुमार, महेंद्र प्रसाद, बचाऊ ने बताया कि अच्छी क्वालिटी का छह से आठ इंच का हाथी तैयार करने में एक हफ्ता लग जाता है। आर्डर की कोई समस्या नहीं है बस अच्छी क्वालिटी के पत्थर उपलब्ध नहीं हो पा रहे।

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