काशी के
प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर शव जलाने के बाद बची भस्म से होली खेलना, महाश्मसान के वार्षिक उत्सव पर नगर वधुओं का चिताओं के सामने
ही संगीत की धुनों पर रात भर
नृत्य करना पूरी दुनिया में मशहूर है। इसे दुनिया में अजब गजब आयोजन के रूप में भी
जाना जाता है। इसी कड़ी में हरिश्चंद्र घाट पर स्थित श्मशान पर भुतहा कवि सम्मेलन
के रूप में एक अौर आयोजन जुड़ गया।
भूत-प्रेत और श्मशान भूमि किसी
के भी भय का विषय हो सकता है लेकिन काशीवासियों के लिए यह अनुराग और उत्सव का
क्षेत्र है। महाश्मशान भूमि पर मृत्य शोक नहीं, उत्सव है। इसी से काशीवासियों का श्मशान प्रेम सहज, स्वाभाविक है। इसी सहज सोच ने हरिश्चंद्र घाट के शवदाह स्थल
पर भुतहा कवि सम्मेलन की परिकल्पना को जन्म दिया और रविवार की शाम यह गंगा-जमुनी
तहजीब की मिसाल भी बन गया। हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के कवियों ने यहां काव्य
पाठ किया।
यह पहला मौका है जब जिंदा लोगों
ने चिताओं पर बैठने का अनुभव लिया। चिताएं सुलगती हुई दिखें, इसके लिए उनके बीचोबीच गुगुल-दसांग एक पात्र में जला कर रखा
गया। ताकि चिता की लकड़ियों के बीच से धुआं उठता रहे।
प्रख्यात कवि धूर्त बनारसी की
इस परिकल्पना को साकार करने के लिए काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति ने जोर-शोर से
तैयारी की थी। घाट किनारे बसी चौधरी बस्ती के बच्चों को भूत-प्रेत-चूड़ैल बनाकर घाट
किनारे भुतहा वातावरण तैयार किया गया। इन बच्चों के साथ सेल्फी लेने वालों की भी
होड़ लगी रही। चिताओं के आसपास नरमुंड रखे गए।
काशी
मोक्षदायिनी सेवा समिति के अध्यक्ष पवन
चौधरी के अनुसार मणिकर्णिका घाट स्थित श्मशानेश्वर
महादेव मंदिर में संगीत का वार्षिक कार्यक्रम राजा मान सिंह के समय से होता आ रहा
है। उस आयोजन से प्रेरित होकर हमने यहां अनूठे अंदाज में साहित्यिक कार्यक्रम की
शुरुआत की है।
सभी
अतिथि स्वर्गीय घोषित हुए
भुतहा कवि सम्मेलन का आमंत्रण
पत्र भी रोचक अंदाज में तैयार किया गया था। मुख्य अतिथि, अध्यक्ष और विशिष्ट अतिथि के नाम के आगे स्वर्गीय अंकित किया
गया। कवियों को अलग-अलग श्रेणियों के भूत-प्रेत की संज्ञा दी गई है तो एकमात्र
कवियित्री के नाम के आगे डायन विशेषण लगाया गया। समय से आकर स्थान ग्रहण करने के
अनुरोध की जगह कार्ड पर लिखा गया है कि आमंत्रित बंधु समय से आकर अपना पिंड ग्रहण
करें। कार्यक्रम का मुख्य आयोजक बाबा श्मशाननाथ को बनाया गया।
डोमराजा
परिवार से जुड़े हैं आयोजक
हरिश्चंद्र घाट पर होने वाले
अनूठे आयोजन के आयोजक काशी के डोमराजा परिवार से संबंध रखते हैं। कई दशक पूर्व
पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे के बाद परिवार के कुछ सदस्य हरिश्चंद्र घाट पर रहने
लगे। तभी से हरिश्चंद्र घाट पर भी शवदाह आरंभ हुआ। उल्लेखनीय है कि सदियों पूर्व
चौधरी परिवार के पूर्वज कल्लू डोम ने राजा हरिश्चंद्र को खरीदा था।